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माँ भगवान की प्रतिनिधि होती है l माँ एक अच्छा संस्कार देने वाली एक पूरी संस्कृति है l जैसा की कहा भी जाता है, ईश्वर के बाद दुनिया में सबसे बड़ा स्थान माँ का ही है l माँ हमारी जन्म्दात्री ही नही बल्कि हमारे अंदर संस्कार डालने वाली गुरु भी है l सच और झूठ का फ़र्क समझना, ज़िम्मेदारियों को निभाना, त्याग और दया की भावनाओं को निभाना, इन सभी का मिश्रण हमारे व्यक्तित्व में है l याद कीजिए आप उन दिनों को, बचपन में जब माँ हमें रोकती टिकती थी l उन हिदायतों के पीछे ममता की छाँव ही थी, जिस से पल कर आज आप एक सफल जीवन व्यतीत कर रहे हैं l
एक स्त्री की दुनिया ज़्यादा दूर तक नही l घर और परिवार के चारों ओर चक्कर काटती रहती है l अपने जीवन की आश्चर्यजनक यात्रा में उसके बच्चे दूसरे लोगों से परिचय करते हैं l एक ऐसे संसार में जहाँ प्रतिस्पर्धा है l जो अनेक पसंद की वस्तुएँ उपलब्ध करता है l ऐसे में अपने बच्चे के सर्वचरेष्ठ चुनने की खातिर वह नये क्षेत्रों मे प्रवेश करती है l तब वह दुबारा से अपनी छमताओं का एहसास करती है l वह ना केवल अपने बच्चों को पालती है बल्कि अपने जीवन की यात्रा में अपने व्यक्तित्व को भी संतोषजनक बनाती है l
दुनिया के साथ- साथ माताओं ने भी अपने एकत्व को खोजा है और सदैव उसकी बढ़ोतरी की इच्छा रखती है l ये बात सच है किसी और के बजाए केवल बच्चे ही हैं जो अपनी माँ को उस काम के लिए उत्साहित करते हैं जिससे माँ का जीवन उचित मार्ग में आगे को बढ़े l
एक स्त्री के कई रूप होते हैं, माँ, सास, बहन, बहू, बेटी, पत्नी, वगेरह l एक महत्वपूर्ण रूप है माँ का और सास का lयहाँ हम बात कर र्हे हैं सासू माँ की, सास को इतना दूर का क्यूँ बना दिया है? जबकि ऐसा है नहीं l वह अपनी बहू को अपनाने के साथ- साथ उससे एक ऐसा रिश्ता जोड़ना चाहती है जो अनमोल है और कभी ना टूटने वाला रिश्ता हो l
उन माओं मे मेरी सास माँ भी हैं l जिन्होने मुझे बेहद स्नेह और प्यार दिया l जब मैने (मेंटल टॉर्चर) मानसिक तनाव झेला था, तब उनको भी लगा था की मैं कोई ग़लत कदम ना उठा लूँ l तब उन्होने ही मुझे जीने का मकसद, जीने का उद्देश्या बताया l दुर्भाग्या से आज वह इस दुनिया में नहीं है l अगर वह होतीं तो मैं गर्व से कहती की मेरे पास सास है l
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